नज़र नहीं आती मुझको ख्वाबों सी वह तस्वीर असलियत में कहीं। अंतर्मन की गाथा कहते ये शब्द ही मेरे अज़ीज़ हैं ........
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बुधवार, 26 दिसंबर 2018
सोमवार, 2 जुलाई 2018
हे अज़नबी!
अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए
एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए
कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं
झोली पर झोली खोली
बातों की होली खेली
बातों की होली खेली
बातों का बन तेज़ बवंडर
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए
लहर लहर कर भहर गए तुम
भहर उठे फिर नज़र न आए
भहर उठे फिर नज़र न आए
तुम ऐसे ही हो या बने आज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो
बातें भोली या मतवारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी
बात रस का विशुद्ध मज़ा
आज तुमको लख जान लिया
आज तुमको लख जान लिया
बातूनी का अर्थ,उदाहरण
दोनों का ही स्वाद चखा
दोनों का ही स्वाद चखा
हे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं
इस शब्द के अर्थ के भीतर
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।
पल्लवी गोयल
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।
पल्लवी गोयल
गुरुवार, 7 जून 2018
रिश्ता
कभी कभी सोचती हूँ कि
रिश्ते दूरी से नहीं,
दिलों से नापे जाते हैं ।
क्योंकि अक्सर एक दरवाजे से
दूसरे दरवाजे तक का सफ़र
तय करने में बरसों गुजर जाते हैं ।
पल्लवी गोयल
रिश्ते दूरी से नहीं,
दिलों से नापे जाते हैं ।
क्योंकि अक्सर एक दरवाजे से
दूसरे दरवाजे तक का सफ़र
तय करने में बरसों गुजर जाते हैं ।
पल्लवी गोयल
मंगलवार, 5 जून 2018
तेरा
कभी रेशम के कुछ धागे बुने
कभी फूलों के कुछ सांचे रचे
नाम तो तेरा कहीं न लिखा था
बुनावट की हर गूँथ पर ,मन
कहता था,यह तेरा था।
पल्लवी गोयल
कभी फूलों के कुछ सांचे रचे
नाम तो तेरा कहीं न लिखा था
बुनावट की हर गूँथ पर ,मन
कहता था,यह तेरा था।
पल्लवी गोयल
पुकार
दिल के रोम रोम से
जो तुझे पुकारा है
क्या सुनता है तू
कि तुझे कुछ भी
सुनना गवारा है।
न यहाँ ,न वहाँ
नज़र आता है तू
सब कहते हैं
तूने ख़ुद को मेरे
पास सॅवारा है।
पल्लवी गोयल
दर्द
जब दर्द कुछ
इतना बढ़ जाए
हर इंतहां को
पार करता हुआ
बस बेइंतहा हो जाए
बोल पड़ती हूं
मैं भी खुदा से
याद कर बनाया था
तूने ही मुझे भी
हक असबाब तमाम
तूने दुनिया को दिए
कुछ रोक इधर
ताकि मैं भी
ठहर सकूं यहीं ।
पल्लवी गोयल
शनिवार, 12 मई 2018
शनिवार, 7 अप्रैल 2018
परन्तु.......................
घुटुरुनियों घिसककर अभी
मां का हाथ पकड़ना था मुझे।
काका की उंगली थामे
थोड़ा सम्हलना था मुझे।
दादी से कहानी सुनना और
भइया से झगड़ना था मुझे।
बहन के कपड़े पहन इतराना और
माँ के आँचल तले छिपना था मुझे।
ककहरों को ज़ोर से रटना और
पट्टी पर खड़िया से लिखना था मुझे।
सखियों के साथ उछलना
पलंग के नीचे छिपना था मुझे।
समय के साथ बढ़-बढ़ कर
माँ का कद छूना था मुझे।
एक सुन्दर सी पियरी में लिपट कर
पिया के घर में बसना था मुझे।
दो बच्चों से माँ और चार से
चाची -ताई कहलवाना था मुझे।
उन बच्चों को पढ़ाना ,खिलाना
डाँटना और समझाना था मुझे।
परन्तु.......................
इनमे से कुछ भी करना
मेरे भाग्य में बदा नहीं।
जन्मदाता ने मेरा भाग्य रचा,
मेरे भाग्यविधाता ने नहीं।
जैसे ही उसे पता चला कि
उसकी पत्नी की कोख़ में पड़ी -
नारी हूँ मैं !!!!!!!!!!!!!!!!!
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
शुक्रवार, 30 मार्च 2018
तन्हाई
ग़मे जिंदगी मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ,
हमक़दम था जो बीच राह अलविदा कह गया
क्या लिपटे थे कलेजे से ज़माने के सितम कम!
जो रुखसत ले इससे ,दे बैठा एक नया गम।
खाए थे भर- भर के कसमे और वादे,
जाते ही उस राह पर इस राह को भूले।
धड़कनों ने धक- धक जो पुकारा हर बार ,
हर बार आ लौटी ये पा खाली दीवार।
रूह से रूह के मिलन का बता मैं क्या करूँ ,
न लेती ये विदा ,न आती 'वो' जो पुकारूँ।
हर तरफ है भीड़,गुलज़ार , तमाशे, ठहाके,
बस तन्हा ये वज़ूद , समेटे बिखरे दिल के टुकड़े।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
शनिवार, 17 मार्च 2018
वही मेरी प्रीत , वही उम्मीद !
ग्वाल बाल का खेल कन्हैया
गोपियों के वे रास रचैया।
यशोदा और ब्रज के दुलारे ,
नन्द बाबा की आँखों के तारे।
कालिया ,पूतना के उद्धारक
दानव ,कंस वध के कारक ।
.
वही वंशी की तान के नायक
वही शंख के नाद सृजक।
परम उद्धारक गीता के गायक
नीति ,धर्म के कुशल धनिक ।
पांचाली के चीर प्रदायक ,
राधा ,रुक्मणि की घनेरी प्रीत।
घन ,जल,थल ,जन के पालक ,
वही मेरी प्रीत , वही उम्मीद !
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
बुधवार, 7 मार्च 2018
शुक्रवार, 2 मार्च 2018
ऐ दिल
अब क्यों ऐ दिल तू बोलता वह बात
क्यों खोलता अपने कपाट।
जब भी कोशिशें कोई मुझसे हुई
तूने आँखें जोर से भींच दीं।
अक्स न कोई उनमें आने दिया
अश्कों को भी जबरन सिया।
मुस्कराहटें बाँटीं मुझे लाचार कर
हज़ार चोटें खाईं खुद को मारकर।
तन्हां रहा तू खुद में डूबा रहा
और मुझे उस भीड़ में चस्पा किया।
दिमाग ने बीच राह में छोड़ दिया
लाठी बन तू राह पर फिरता रहा।
आज 'वह' दिख ज़रा सा क्या गया
तू खुद से खुद को छोड़ चला ?
देखता रहा तू मंज़र आज तक
राह की रवानगी से बेराह तक।
आज जाता है तो फिर से सोच ले
गुमशुदा उदास न लौटे उस ओर से।
पल्लवी गोयल
(चित्र साभार गूगल )
बुधवार, 28 फ़रवरी 2018
शनिवार, 17 फ़रवरी 2018
यादों का सफ़र
तेरी यादों की खुशबू
जब चूमती थी
मेरे जेहन को
उस रुमानियत में तेरे
आने से खलल पड़ता था।
चाँद की गोलाई पर
तेरे अक्स के उभरते ही
पलकों के झपक जाने से
खलल पड़ता था।
पत्तों की खड़खड़ाहट के
सन्नाटे में बदल जाने से
तेरे कहीं रुक जाने की
बदख्याली का डर रहता था।
और आज जब आँखें खोल
भूलना चाहती हूँ तुझको
तेरी यादों के ठहर जाने से
खलल पड़ता है।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
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