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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

काश!


काश! कि ये हो पाता,
छोटा सा तू, जो धड़कता है।
इन नामुराद पसलियों के बीच,
तुझे आकार देना खुदा,
भूल जाता या तू खो जाता।
तो बेदर्द दर्द, बेसहारा, गुमशुदा,
लावारिस हो अपनी राह लेता।
जो बनाए बैठा है तुझे अपना घर
यही है सारे दीवानेपन की जड़।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार


सोमवार, 2 जुलाई 2018

हे अज़नबी!


अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए

एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए

कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं

झोली पर झोली खोली
बातों की होली खेली

बातों का बन तेज़ बवंडर
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए

लहर लहर कर भहर गए तुम
भहर उठे फिर नज़र न आए

तुम ऐसे ही हो या बने आज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो

बातें भोली या मतवारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी

बात रस का विशुद्ध मज़ा
आज तुमको लख जान लिया

बातूनी  का अर्थ,उदाहरण
दोनों का ही स्वाद चखा

हे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं

इस शब्द के अर्थ के भीतर
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।

पल्लवी गोयल


गुरुवार, 7 जून 2018

रिश्ता

कभी कभी सोचती  हूँ कि
रिश्ते दूरी से नहीं,
 दिलों से नापे जाते हैं ।

क्योंकि अक्सर एक दरवाजे से
दूसरे दरवाजे तक का सफ़र
तय करने में बरसों गुजर जाते हैं ।

पल्लवी गोयल 

मंगलवार, 5 जून 2018

तेरा

 कभी रेशम के कुछ धागे बुने
कभी फूलों के कुछ सांचे रचे
नाम  तो तेरा कहीं न लिखा था
बुनावट की हर गूँथ पर ,मन
कहता था,यह तेरा था।

पल्लवी गोयल

पुकार


दिल के रोम रोम से
जो तुझे पुकारा है
क्या सुनता है तू
कि तुझे कुछ भी
सुनना गवारा है।

न यहाँ ,न  वहाँ
नज़र आता है तू
सब कहते हैं
तूने ख़ुद को मेरे
पास सॅवारा है।

पल्लवी गोयल 

दर्द


 जब दर्द कुछ 
इतना बढ़ जाए 
हर इंतहां को 
पार  करता हुआ 
बस बेइंतहा हो जाए    
बोल पड़ती हूं 
मैं भी खुदा से 
याद कर बनाया था 
तूने ही मुझे भी 
हक असबाब  तमाम 
तूने दुनिया को दिए   
कुछ रोक इधर 
ताकि मैं भी
ठहर सकूं यहीं ।

पल्लवी गोयल 

शनिवार, 12 मई 2018

एक तस्वीर

  


गुलाबी से इस शहर में 

गुलाबी सा नशा है उनका भी 

रात बीतती है इंतजार में उनके

और दिन ख्वाब  में उनके ही 

बंद आंखों में नशा  ए इज़हार है  

खुली आंखों में दीदार ए इंतजार उनका ही

 ना वफा की उम्मीद ,ना दगा का डर 

बस दिल में रखी  एक तस्वीर सी उनकी ही ।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार 

शनिवार, 7 अप्रैल 2018

परन्तु.......................


घुटुरुनियों घिसककर  अभी 
मां का हाथ पकड़ना था मुझे। 
काका की उंगली थामे 
थोड़ा सम्हलना था मुझे। 

दादी से कहानी सुनना और 
भइया से झगड़ना था मुझे। 
बहन के कपड़े पहन इतराना और 
माँ के आँचल  तले छिपना था मुझे। 

ककहरों को ज़ोर  से रटना  और 
पट्टी  पर खड़िया से लिखना था मुझे। 
सखियों के साथ उछलना 
पलंग के नीचे छिपना था मुझे। 


समय के साथ बढ़-बढ़ कर 
माँ का कद छूना  था मुझे। 
एक सुन्दर सी पियरी में लिपट कर
 पिया के  घर में बसना था मुझे। 

दो बच्चों  से माँ  और चार से 
चाची -ताई कहलवाना था मुझे। 
उन बच्चों को पढ़ाना ,खिलाना
डाँटना  और समझाना था मुझे। 

परन्तु.......................

 इनमे से कुछ भी करना
मेरे  भाग्य  में बदा नहीं।
जन्मदाता ने मेरा  भाग्य रचा,
मेरे भाग्यविधाता  ने नहीं।  

जैसे ही उसे पता चला कि 
उसकी पत्नी की कोख़  में पड़ी -
नारी हूँ मैं !!!!!!!!!!!!!!!!!

पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल





शुक्रवार, 30 मार्च 2018

तन्हाई



ग़मे जिंदगी मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ,
 हमक़दम था जो बीच राह अलविदा कह गया 

क्या लिपटे थे कलेजे से ज़माने के सितम कम! 
जो रुखसत ले इससे ,दे बैठा एक नया गम। 

खाए थे भर- भर के कसमे और वादे, 
जाते ही उस राह पर इस राह को भूले।  

धड़कनों  ने धक- धक जो पुकारा हर बार ,
हर बार आ लौटी ये पा  खाली  दीवार। 

रूह से रूह के मिलन का बता मैं  क्या करूँ ,
न लेती ये विदा ,न आती 'वो' जो पुकारूँ। 

हर तरफ है भीड़,गुलज़ार , तमाशे, ठहाके, 
बस तन्हा ये वज़ूद , समेटे बिखरे दिल के टुकड़े। 

पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल 

 

शनिवार, 17 मार्च 2018

वही मेरी प्रीत , वही उम्मीद !



ग्वाल बाल का खेल कन्हैया 
गोपियों के वे रास रचैया। 


 यशोदा और ब्रज के दुलारे ,
नन्द बाबा की आँखों के तारे।


कालिया ,पूतना के उद्धारक 
दानव ,कंस वध  के कारक । 
 . 

वही वंशी की तान के नायक 
वही शंख के नाद सृजक। 


परम  उद्धारक गीता के गायक 
नीति ,धर्म के कुशल धनिक । 


पांचाली के चीर प्रदायक ,
राधा ,रुक्मणि की घनेरी प्रीत। 


घन ,जल,थल ,जन के पालक ,
वही मेरी प्रीत , वही उम्मीद !


पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल 

बुधवार, 7 मार्च 2018

मेरे गीत, मेरा संगीत


मेरे  होठों से निकली आह ही
 मेरे गीत हैं

रूह से निकली तान ही
संगीत है।

धड़कनों में बजता एक
साज़ है ।

साँसों की सरगम ही मेरी
आवाज़ है।

नसों में बहती नदिया ही मेरी
चाल है।

पलकों की झपकन ही
लय ताल है।

कहीं देख कोई सकता नहीं
मुझे स्पष्ट ही

पूरी मैं बस दिखती यहीं । 

पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल 


शुक्रवार, 2 मार्च 2018

ऐ दिल


अब क्यों ऐ  दिल तू बोलता वह बात 
क्यों खोलता अपने कपाट। 

 जब भी कोशिशें कोई मुझसे हुई 
तूने आँखें जोर से भींच दीं। 

अक्स न कोई उनमें आने दिया 
अश्कों को भी जबरन सिया। 

मुस्कराहटें बाँटीं मुझे लाचार  कर
हज़ार चोटें खाईं खुद को मारकर। 

तन्हां रहा तू खुद में डूबा रहा 
और मुझे उस भीड़ में चस्पा किया। 

दिमाग ने  बीच राह में छोड़ दिया 
लाठी बन तू राह पर फिरता रहा। 

आज 'वह' दिख ज़रा सा क्या गया 
तू खुद से खुद को छोड़ चला ?

देखता रहा तू मंज़र आज तक 
राह की रवानगी से बेराह तक। 

आज जाता है तो फिर से सोच ले  
गुमशुदा उदास न लौटे उस ओर  से। 

पल्लवी गोयल 
(चित्र साभार गूगल  )


बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मौन


नि:शब्द, सागर , नदी, झरनों से
रिश्ता कुछ   गहरा है ।

इनके शोर में भी, बरसों बरस
का मौन ठहरा है ।

बाधा ,ऊँचाई  ,गर्त    हर कदम
पर भहरा है ।

पर इनका जल  इनकी मर्यादा
में ही ठहरा है


ऐ दिल, हृदय, शरीर तुम्हारे भी
सिर पर सेहरा है ।

दुनिया के कोलाहल  में भी
 जीवन शांत लहरा है।

पल्लवी गोयल 
( चित्र गूगल से साभार )











शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

यादों का सफ़र




आँखे बंद करते ही 
तेरी यादों की खुशबू 
जब चूमती थी
 मेरे जेहन को 
उस रुमानियत में तेरे 
आने से खलल पड़ता था। 

चाँद  की गोलाई पर 
तेरे अक्स के उभरते ही
पलकों के झपक जाने से 
खलल पड़ता था।  

पत्तों की खड़खड़ाहट के
सन्नाटे  में बदल जाने से 
तेरे कहीं  रुक जाने की 
बदख्याली का डर  रहता था। 

और आज जब आँखें  खोल 
भूलना चाहती हूँ  तुझको 
तेरी यादों के ठहर जाने से
 खलल पड़ता है। 

पल्लवी गोयल

चित्र साभार गूगल