घुटुरुनियों घिसककर अभी
मां का हाथ पकड़ना था मुझे।
काका की उंगली थामे
थोड़ा सम्हलना था मुझे।
दादी से कहानी सुनना और
भइया से झगड़ना था मुझे।
बहन के कपड़े पहन इतराना और
माँ के आँचल तले छिपना था मुझे।
ककहरों को ज़ोर से रटना और
पट्टी पर खड़िया से लिखना था मुझे।
सखियों के साथ उछलना
पलंग के नीचे छिपना था मुझे।
समय के साथ बढ़-बढ़ कर
माँ का कद छूना था मुझे।
एक सुन्दर सी पियरी में लिपट कर
पिया के घर में बसना था मुझे।
दो बच्चों से माँ और चार से
चाची -ताई कहलवाना था मुझे।
उन बच्चों को पढ़ाना ,खिलाना
डाँटना और समझाना था मुझे।
परन्तु.......................
इनमे से कुछ भी करना
मेरे भाग्य में बदा नहीं।
जन्मदाता ने मेरा भाग्य रचा,
मेरे भाग्यविधाता ने नहीं।
जैसे ही उसे पता चला कि
उसकी पत्नी की कोख़ में पड़ी -
नारी हूँ मैं !!!!!!!!!!!!!!!!!
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल