ग़मे जिंदगी मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ,
हमक़दम था जो बीच राह अलविदा कह गया
क्या लिपटे थे कलेजे से ज़माने के सितम कम!
जो रुखसत ले इससे ,दे बैठा एक नया गम।
खाए थे भर- भर के कसमे और वादे,
जाते ही उस राह पर इस राह को भूले।
धड़कनों ने धक- धक जो पुकारा हर बार ,
हर बार आ लौटी ये पा खाली दीवार।
रूह से रूह के मिलन का बता मैं क्या करूँ ,
न लेती ये विदा ,न आती 'वो' जो पुकारूँ।
हर तरफ है भीड़,गुलज़ार , तमाशे, ठहाके,
बस तन्हा ये वज़ूद , समेटे बिखरे दिल के टुकड़े।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
वाह लाजवाब बहुत संजीदा।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुसुम जी,आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया ही लेखन का उत्साह बनाए रखती है । प्रेम भाव बनाए रखिएगा।बहुत बहुत आभार ।
हटाएंसादर ।
आह..हृदय खोल कर रख दिया आपने अपना. बहुत संजीदा,
जवाब देंहटाएंएक पुकार जो सीधा रूह से निकली है ये मैम.
इस खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
आपके अमूल्य स्नेह के लिए शुक्रगुजार है हम ।सुधा मैम,बहुत बहुत धन्यवाद ।
हटाएंसस्नेह ।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद नीतू जी ।
हटाएंवाह!!बहुत सुंंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी ।
हटाएंबेहतरीन...लाजवाब...
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है प्रसन्नवदन जी ।
हटाएंरचना पसंद करने के लिए आभार ।
सादर ।
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
प्रिय श्वेता जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार ।
पाँच लिंकों में स्थान पाना सदैव ही आनंददायक रहा हैं
इसके लिए हृदय से आभार ।
सस्नेह ।
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार,सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रूमानी कविता ... शब्द मन में तैर रहे है
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार संजय जी ।
हटाएंसस्नेह ।