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बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मौन


नि:शब्द, सागर , नदी, झरनों से
रिश्ता कुछ   गहरा है ।

इनके शोर में भी, बरसों बरस
का मौन ठहरा है ।

बाधा ,ऊँचाई  ,गर्त    हर कदम
पर भहरा है ।

पर इनका जल  इनकी मर्यादा
में ही ठहरा है


ऐ दिल, हृदय, शरीर तुम्हारे भी
सिर पर सेहरा है ।

दुनिया के कोलाहल  में भी
 जीवन शांत लहरा है।

पल्लवी गोयल 
( चित्र गूगल से साभार )











शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

यादों का सफ़र




आँखे बंद करते ही 
तेरी यादों की खुशबू 
जब चूमती थी
 मेरे जेहन को 
उस रुमानियत में तेरे 
आने से खलल पड़ता था। 

चाँद  की गोलाई पर 
तेरे अक्स के उभरते ही
पलकों के झपक जाने से 
खलल पड़ता था।  

पत्तों की खड़खड़ाहट के
सन्नाटे  में बदल जाने से 
तेरे कहीं  रुक जाने की 
बदख्याली का डर  रहता था। 

और आज जब आँखें  खोल 
भूलना चाहती हूँ  तुझको 
तेरी यादों के ठहर जाने से
 खलल पड़ता है। 

पल्लवी गोयल

चित्र साभार गूगल