ग़मे जिंदगी मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ,
हमक़दम था जो बीच राह अलविदा कह गया
क्या लिपटे थे कलेजे से ज़माने के सितम कम!
जो रुखसत ले इससे ,दे बैठा एक नया गम।
खाए थे भर- भर के कसमे और वादे,
जाते ही उस राह पर इस राह को भूले।
धड़कनों ने धक- धक जो पुकारा हर बार ,
हर बार आ लौटी ये पा खाली दीवार।
रूह से रूह के मिलन का बता मैं क्या करूँ ,
न लेती ये विदा ,न आती 'वो' जो पुकारूँ।
हर तरफ है भीड़,गुलज़ार , तमाशे, ठहाके,
बस तन्हा ये वज़ूद , समेटे बिखरे दिल के टुकड़े।
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल