घुटुरुनियों घिसककर अभी
मां का हाथ पकड़ना था मुझे।
काका की उंगली थामे
थोड़ा सम्हलना था मुझे।
दादी से कहानी सुनना और
भइया से झगड़ना था मुझे।
बहन के कपड़े पहन इतराना और
माँ के आँचल तले छिपना था मुझे।
ककहरों को ज़ोर से रटना और
पट्टी पर खड़िया से लिखना था मुझे।
सखियों के साथ उछलना
पलंग के नीचे छिपना था मुझे।
समय के साथ बढ़-बढ़ कर
माँ का कद छूना था मुझे।
एक सुन्दर सी पियरी में लिपट कर
पिया के घर में बसना था मुझे।
दो बच्चों से माँ और चार से
चाची -ताई कहलवाना था मुझे।
उन बच्चों को पढ़ाना ,खिलाना
डाँटना और समझाना था मुझे।
परन्तु.......................
इनमे से कुछ भी करना
मेरे भाग्य में बदा नहीं।
जन्मदाता ने मेरा भाग्य रचा,
मेरे भाग्यविधाता ने नहीं।
जैसे ही उसे पता चला कि
उसकी पत्नी की कोख़ में पड़ी -
नारी हूँ मैं !!!!!!!!!!!!!!!!!
पल्लवी गोयल
चित्र साभार गूगल
बेहद.हृदयस्पर्शी रचना पल्लवी जी।
जवाब देंहटाएंअजन्मी बिटिया के ख़्वाबों के मधुर रसपान करते हुये कड़वे सच के जहर से मुँह कसैला हो गया मानो।
प्रिय श्वेता जी,
हटाएंरचना को पसंद करने के लिए ह्रदय से धन्यवाद।यदि समाज से ऐसे सच मिट जाएं तो नारी अपने सुन्दरतम रूप में प्रकाशित हो इस धरती को ही स्वर्ग बनाने की सामर्थ्य रखती है। काश ऐसा हो............
सादर।
बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय।
हटाएंसुंदर हृदय स्पर्शी रचना पल्लवी मैम. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सुधा मैम ।
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना पल्लवी जी।
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद संजय जी ।
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आदरणीय
हटाएंरचना पसंद करने के व मंच पर शामिल करने के लिए आभार ।
सादर ।
हृदय को स्पर्श करने की बात है सारी इतने अच्छे से पिरोया है आपने शब्दों में कई प्रशंसा के शब्द कम पड़ेंगे शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभार सुप्रिया जी ।
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद रीना जी ।
हटाएंअजन्मी बेटी का आक्रांत स्वर !!!!! सचमुच यही कहती होगी उसकी आहत आत्मा | प्रिय पल्लवी जी -- बहुत ही संवेदनशीलता से आपने इक निरपराध अजन्मी बेटी के आत्मकथ्य को शब्दों में संजोया है | मुझे भी एक मर्मान्तक अनुभव स्मरण हो आया | निकट भविष्य में विस्तार से लिख शेयर करूंगी | सस्नेह --
जवाब देंहटाएंऐसे प्रकरण वास्तव मे हृदय तक बेध देते हैं रेनू जी । आपके लेखन का इंतज़ार रहेगा ।प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
हटाएंसादर ।
बहुत मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंदर्द से भर उठता है मन ऐसे क़िस्से सुन कर ... काश समाज बदल जाए ...
धन्यवाद महोदय ।
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