हसीन ख्वाब आते हैं
और चले जाते हैं
वास्तविकता के दर्द के परे
ये अपनी ही दुनिया बनाते हैं
स्थितियों का कोई दरवाजा
इन्हें रोक नहीं पाता
दिमाग में झलकती एक
छाया की खुशबू ही पर्याप्त है........
इन्हें अपना धर्म
निभाने देने के लिए
कर्म करते बंद आँखों का
इन्तजार भी इनसे नहीं होता
खुली आंखें भी इस धर्म
का हिस्सा बन जाती हैं
वास्तविकता से एक नाता
इनका अवश्य रहता है
यदि ये दिमाग में रहे तो
बुलबुले से फूट बिखर जाते हैं ,
और कहीं ह्रदय में पहुंचे तो , कभी
हिम श्रृंखला छूने को मज़बूर करते
कभी टेलीफ़ोन हवाई जहाज की शक्ल
में ढल के संसार में बिखर जाते हैं। ......
अपनी सपनीली दुनिया की
मैं
अकेली परी हूँ
यहाँ फूल मुस्काते
हैं
पेड़ खिलखिलाते
हर
एक पहाड़
हैं वादियों में गीत गाते
हवाएँ जब चलती
हैं
ठुमककर लहराती
प्रकृति मगन हो
शांति गुनगुनाती
आसमां का विस्तार न
बाँहों में नाप पाती
पिता सा वृहद् रूप
हूँ
उसमें ही पाती
धरती की गोदी में
झूलती है ये हस्ती
घूमती फिरती हूँ
निडर हो मैं हँसती
भौरें आ संदेशा सुनाते
पंख
तितलियों के
मुझको लुभाते
जब
भी मैं गुमसुम हूँ
बैठी पकड़े किनारा
छेड़ना मुझे कभी ना
वहीँ होता अस्तित्व सारा
उस
दुनिया की सैर से
जब
आती यहाँ पर
लगता है यह संसार
मुझको प्यारा प्यारा
चित्र साभार गूगल
खुशियां बताती हैं
मुझे हर रोज़
दोस्ती करनी है तो
उन ग़मों से कर
जो तेरे हर पल
के साथी हैं
जा, दूर दूर तक
मेरा और तेरा
कोई नाता नहीं
अनदेखी कर
हर एक बात
वो तो मैं ही हूँ
जो हर दिन
बहनापा दिखा
सटी जाती हूँ
उन आँखों में
तिरता प्रश्न देखकर,
इन आँखों पर
शुबहा होता है!
क्यों ये प्रश्न
पाती हैं वहाँ ?
सब इन्हीं आँखों का
बिछाया धोखा है।
उठते ही जब
ये गिरती हैं।
छिपती हैं,
कहीं खोती हैं।
हलचल होती है,
किसी दिल में।
नादान प्रश्न भेजता
है आँखों में।
अब प्रश्न आया
तो दोष किसका ?
इन आँखों का,
या उन आँखों का ?
आप कहते हैं,
दोष इनका।
अपराधी हैं ये
सन्देश भेजने की।
ये कहती हैं, इस
गुनाह में साथ किसका ?
(चित्र साभार गूगल )