काश! कि ये हो पाता,
छोटा सा तू, जो धड़कता है।
इन नामुराद पसलियों के बीच,
तुझे आकार देना खुदा,
भूल जाता या तू खो जाता।
तो बेदर्द दर्द, बेसहारा, गुमशुदा,
लावारिस हो अपनी राह लेता।
जो बनाए बैठा है तुझे अपना घर
यही है सारे दीवानेपन की जड़।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
👌 👌 बहुत खूबसूरत. काश....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा मैम ।
जवाब देंहटाएंवाह,,,और बस वाह।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आदरणीय
हटाएंसादर।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी ,
हटाएंनमस्कार।
रचना को शामिल करनेके लिए आभार व्यक्त करती हूँ आपका।
सस्नेह।
वाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद,आदरणीया कुसुम जी।
हटाएंसादर।
चार पक्तियों में ही दिल की सारी बाते कह डाली ,बहुत सुंदर......सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी जी,
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है ।सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
सस्नेह।
उम्दा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
हटाएंबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी ।
हटाएं