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बुधवार, 26 दिसंबर 2018

काश!


काश! कि ये हो पाता,
छोटा सा तू, जो धड़कता है।
इन नामुराद पसलियों के बीच,
तुझे आकार देना खुदा,
भूल जाता या तू खो जाता।
तो बेदर्द दर्द, बेसहारा, गुमशुदा,
लावारिस हो अपनी राह लेता।
जो बनाए बैठा है तुझे अपना घर
यही है सारे दीवानेपन की जड़।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार


14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता जी ,
      नमस्कार।
      रचना को शामिल करनेके लिए आभार व्यक्त करती हूँ आपका।
      सस्नेह।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद,आदरणीया कुसुम जी।
      सादर।

      हटाएं
  3. चार पक्तियों में ही दिल की सारी बाते कह डाली ,बहुत सुंदर......सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी जी,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
      सस्नेह।

      हटाएं
  4. बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...

    जवाब देंहटाएं