आज जो देखा है उनको,
कल भी था उनको देखा ।
भावों की सरिता में बहते ,
बहते भावों को उनमें देखा ।
चलते चलते कभी न रुकते,
थमते न उनको देखा ।
हर रोज नदिया उछल- उछल
कर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
नतमस्तक होता है मन ।
उनकी चाल है स्थिर प्रज्ञा ,
श्रद्धा सुमन उनको अर्पण।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार