विषपान करो !
जग दाता है ,
ना समझो
वह अमृत देगा ।
जीना है
उसके हक में
मरना वह
तुमको देगा।
नीलकंठ बन
धरो गले में ,
दिल दिमाग
से दूर रखो।
व्यक्ति, व्यक्ति
लालच देगा,
प्रेम ,झूठ का
धंधा होगा ।
फिर आशा की
बेल का झुलसा,
सूखा फाँसी का
फंदा होगा।
जीना खुद का
खुद पर रखो।
जग को बस
उससे दूर रखो।
याद रखो तुम
अपने में पूरे।
विश्वास रखो
और बढ़े चलो।
पल्लवी गोयल