अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए
एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए
कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं
झोली पर झोली खोली
बातों की होली खेली
बातों की होली खेली
बातों का बन तेज़ बवंडर
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए
लहर लहर कर भहर गए तुम
भहर उठे फिर नज़र न आए
भहर उठे फिर नज़र न आए
तुम ऐसे ही हो या बने आज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो
बातें भोली या मतवारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी
बात रस का विशुद्ध मज़ा
आज तुमको लख जान लिया
आज तुमको लख जान लिया
बातूनी का अर्थ,उदाहरण
दोनों का ही स्वाद चखा
दोनों का ही स्वाद चखा
हे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं
इस शब्द के अर्थ के भीतर
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।
पल्लवी गोयल
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।
पल्लवी गोयल
अजनबी तुम क्यों मन को इतना भाये
जवाब देंहटाएंइस आँखों में तेरी प्रेम के डोले साये
बहुत सुंदर सुरीली रचना पल्लवी जी।👌
वाह! वाह! सुंदर पंक्तियाँ श्वेता जी । आपके प्यार ने रचना का मान बढ़ा दिया । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
हटाएंसादर।
जवाब देंहटाएंहे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं .....बहुत सुंदर!!!!
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी ।
हटाएंअजनबी !तुम कहाँ से आए--
जवाब देंहटाएंआये तो क्यों यों मन भाये ?
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लाये वीराने में बहार तुम -
गये बदल ये मन का मौसम
विकल जिया कहीं चैन ना पाए -
अजनबी !तुम कहाँ से आए-- --
क्या बात है प्रिय पल्लवी जी -- अत्यंत मधुर लयबद्ध काव्य | आपके साथ गुनगुनाने को मन चाहा | बहुत मनभावन रचना | हार्दिक बधाई |
वाह!वाह! रेनू जी । इन चंद पंक्तियों के साथ आपने काव्य को संपूर्ण कर दिया । बहुत सुन्दर । आपकी लेखनी के स्नेह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
हटाएंस्नेह ।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद लोकेश जी ।
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ।
जवाब देंहटाएंसाभार ।
अजनबी हो पर कहीं पहचान पुरानी लगती है.
जवाब देंहटाएंपर मन कहता बस रहो सदा अजनबी मन मे मधुर कसक लिये
सुंदर गीत काव्य ।
आदरणीय कुसुम जी
हटाएंस्नेह बनाये रखने के लिए हृदय से आभार ।
सादर ।
निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंआदरणीय रोली अभिलाषा जी को शुभकामनाएँ ।मैं अवश्य आऊँगी।
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मीना जी।
हटाएंतुमको न जानूंगी मैं .....बहुत सुंदर!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय संजय जी।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
हटाएंरचना को यह सम्मान देने के लिए हृदय तल से धन्यवाद। देर से उत्तर देने के लिए माफी चाहती हूं ।पारिवारिक कारणों से व्यस्त थी ।सादर।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
हटाएंNice post
जवाब देंहटाएंप्रिय दीपशिखा जी आभार है आपका।
हटाएंवाह! बहुत खूब। अजनबीयों से मेरा भी कुछ यही प्रश्न होता है। हम इनसे कब घुल-मिल जाते हैं पता ही नहीं चलता। अजनबीयों पर इसी प्रकार की मेरी भी एक रचना है "कौन हो तुम?"। आप समय निकालकर अवश्य पढ़े।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मुझे कविता पढ़कर खुशी होगी... मैं अवश्य पढूंगी
हटाएंसस्नेह।
बेहतरीन रचना .......सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए सादर आभार।
हटाएंये अजनबी बहुत खास है....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर.... लाजवाब...
प्रिय सुधा जी,
हटाएंइस अजनबी को पसंद करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
सस्नेह।
वाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
हटाएंबहुत-बहुत आभार है आपका।