फ़ॉलोअर

सोमवार, 2 जुलाई 2018

हे अज़नबी!


अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए

एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए

कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं

झोली पर झोली खोली
बातों की होली खेली

बातों का बन तेज़ बवंडर
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए

लहर लहर कर भहर गए तुम
भहर उठे फिर नज़र न आए

तुम ऐसे ही हो या बने आज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो

बातें भोली या मतवारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी

बात रस का विशुद्ध मज़ा
आज तुमको लख जान लिया

बातूनी  का अर्थ,उदाहरण
दोनों का ही स्वाद चखा

हे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं

इस शब्द के अर्थ के भीतर
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।

पल्लवी गोयल


33 टिप्‍पणियां:

  1. अजनबी तुम क्यों मन को इतना भाये
    इस आँखों में तेरी प्रेम के डोले साये

    बहुत सुंदर सुरीली रचना पल्लवी जी।👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह! वाह! सुंदर पंक्तियाँ श्वेता जी । आपके प्यार ने रचना का मान बढ़ा दिया । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
      सादर।

      हटाएं

  2. हे अजनबी तुम अजनबी ही
    रहो ,तुमको न जानूंगी मैं .....बहुत सुंदर!!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद विश्वमोहन जी ।

      हटाएं
  3. अजनबी !तुम कहाँ से आए--
    आये तो क्यों यों मन भाये ?
    -
    लाये वीराने में बहार तुम -
    गये बदल ये मन का मौसम
    विकल जिया कहीं चैन ना पाए -
    अजनबी !तुम कहाँ से आए-- --
    क्या बात है प्रिय पल्लवी जी -- अत्यंत मधुर लयबद्ध काव्य | आपके साथ गुनगुनाने को मन चाहा | बहुत मनभावन रचना | हार्दिक बधाई |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह!वाह! रेनू जी । इन चंद पंक्तियों के साथ आपने काव्य को संपूर्ण कर दिया । बहुत सुन्दर । आपकी लेखनी के स्नेह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
      स्नेह ।

      हटाएं
  4. बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी ।
    साभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अजनबी हो पर कहीं पहचान पुरानी लगती है.
    पर मन कहता बस रहो सदा अजनबी मन मे मधुर कसक लिये
    सुंदर गीत काव्य ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय कुसुम जी
      स्नेह बनाये रखने के लिए हृदय से आभार ।
      सादर ।

      हटाएं
  6. निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय रोली अभिलाषा जी को शुभकामनाएँ ।मैं अवश्य आऊँगी।

    जवाब देंहटाएं
  8. तुमको न जानूंगी मैं .....बहुत सुंदर!!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया,
      रचना को यह सम्मान देने के लिए हृदय तल से धन्यवाद। देर से उत्तर देने के लिए माफी चाहती हूं ।पारिवारिक कारणों से व्यस्त थी ।सादर।

      हटाएं
  10. वाह! बहुत खूब। अजनबीयों से मेरा भी कुछ यही प्रश्न होता है। हम इनसे कब घुल-मिल जाते हैं पता ही नहीं चलता। अजनबीयों पर इसी प्रकार की मेरी भी एक रचना है "कौन हो तुम?"। आप समय निकालकर अवश्य पढ़े।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मुझे कविता पढ़कर खुशी होगी... मैं अवश्य पढूंगी
      सस्नेह।

      हटाएं
  11. बेहतरीन रचना .......सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  12. ये अजनबी बहुत खास है....
    बहुत ही सुन्दर.... लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी,
      इस अजनबी को पसंद करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
      सस्नेह।

      हटाएं