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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

मेरी दुनिया

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अपनी सपनीली दुनिया की 
 मैं अकेली परी हूँ


यहाँ फूल मुस्काते 
हैं पेड़ खिलखिलाते 

हर एक पहाड़ 
 हैं वादियों में गीत गाते

हवाएँ  जब चलती 
हैं ठुमककर  लहराती 

प्रकृति मगन हो 
शांति  गुनगुनाती 

आसमां  का विस्तार  
बाँहों में नाप पाती 

पिता सा वृहद् रूप 
हूँ उसमें  ही पाती 

धरती की गोदी में 
झूलती है ये हस्ती 

घूमती फिरती हूँ 
निडर हो मैं  हँसती 

भौरें संदेशा  सुनाते 
पंख तितलियों के 
मुझको लुभाते 

जब भी मैं गुमसुम हूँ 
बैठी पकड़े किनारा 

छेड़ना मुझे कभी  ना
वहीँ होता अस्तित्व सारा 

उस दुनिया की सैर से
जब आती यहाँ पर

लगता है यह संसार 
मुझको प्यारा  प्यारा 







चित्र साभार गूगल 

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

खुशियां बताती हैं....

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खुशियां बताती हैं 
 मुझे हर रोज़

दोस्ती करनी है तो 
उन ग़मों से कर

जो तेरे हर पल 
के साथी हैं  

जा, दूर दूर तक 
मेरा और तेरा 
कोई नाता नहीं 

अनदेखी कर 
हर एक बात 

वो तो मैं  ही हूँ 
जो हर दिन 

बहनापा दिखा
सटी जाती हूँ    



रविवार, 3 जनवरी 2016

दोष किसका ?



उन  आँखों में 
तिरता प्रश्न देखकर, 
इन आँखों पर 
शुबहा होता है!  


क्यों ये प्रश्न 
पाती  हैं वहाँ ? 


सब इन्हीं आँखों का 
बिछाया धोखा है। 


उठते ही जब
 ये गिरती हैं। 
छिपती  हैं, 
कहीं खोती  हैं। 


हलचल होती है, 
किसी दिल में।  


नादान  प्रश्न भेजता
 है आँखों में। 


अब प्रश्न आया 
तो दोष किसका  ?


इन आँखों का, 
या उन  आँखों का ? 


आप कहते हैं, 
 दोष इनका। 
अपराधी हैं  ये 
सन्देश भेजने की। 


ये कहती हैं, इस 
गुनाह में साथ किसका ? 

(चित्र साभार गूगल )

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

दो चार दिन

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जिंदगी है दो चार दिन की 
चल खुल के सांस ले ले .
दोस्तों से भर ले दुनिया 
दुश्मनों  को दोस्त कर ले .
तू भी अच्छा मैं भी अच्छा 
फिर हृदय  है कौन मैला !
मैल ,धूल धरती पर सजती 
देख हृदय में जगह न ले ले . 
नफ़रतों  की भीड़ में से 
चन्द रहमतों को साथ ले ले .
जिंदगी है दो चार दिन की 
चल खुल के सांस ले ले .

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

औरत


औरत ! तू है क्या
 बेचारी ,अभागी, सुकुमारी ?

जब  दुनिया में,
शक्ति रूप प्रतिष्ठित,
'जगदम्बा' नारी रूप में ,
तू कहलाती अबला नारी !

कवियों द्वारा दिया
 नाम 'चंद्रमुखी' ,
सुनते ही तू शर्मा गई .
छुइ मुई बन, डोले में बैठ,
बादलों के रथ पर सवार,
 तू घर आ गई .

अच्छा है, पद माता
का है तुझे निभाना.
भार्या बन, पति का 
आदेश निभाना.

पर  भूल न जाना वह रूप,
 जो लक्ष्मीबाई ने दिखाया मैदानों में,
गार्गी ने दिखाया दरबारों में .

माता ,पत्नी ,बहू , बेटी का धर्म
निभाना है, तुझे इस धरती पर.

पर भूल न जाना -
तू बनी है किस मिट्टी  से !
अपने अस्तित्व  की माटी का
कर्ज अदा करना है अभी .

अपनी पहचान को कभी 
अपने से जुदा  मत होने देना.

तुम्हारी पहचान छीनने वालों पर,
प्रहार करने से न चूकना .
सम्मान करने वालों को
प्रणाम करना भी मत भूलना .  

शनिवार, 28 नवंबर 2015

जिंदगी

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जिंदगी नहीं है फूलों की सेज,
जिसे बिछा  कर इंसान सो सके


जिंदगी नहीं है मखमली कालीन ,
जिसके गुजगुजेपन पर बेफिक्र हो सके 


जिंदगी नहीं है पंखे की हवा ,
जहाँ  स्वेद कणों  को धो सके 


जिंदगी नहीं है चाय का धुआँ,
जो आरामकुर्सी पर बैठ  ले सकें

जिंदगी नहीं है कार की पिछली सीट 
जहाँ मनचाही नींद का आनंद उठा सकें 


जिंदगी  कदापि नहीं कोने का कमरा ,
जहाँ  सदैव सुरक्षा की साँस ले सकें 





जिंदगी का हर एक पल है संघर्ष ,
जिसे ओढ़ कर शायद यह सफल हो सके 


जिंदगी के हर एक पल में है नया दुःख ,
 इस सागर में तैरकर  सुख के मोती निकल सके 



जिंदगी का हर एक पल है हिम्मत ,
माला को फेर ही विजय पताका फहर सके
                                                 
                                                         पल्लवी गोयल



शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

क्यों ?

Beautiful Night Sky Wallapers (20)




बात आती है  जुबाँ पर
पर  लफ्ज़  नहीं  होते 


चित्र  बसा है  नज़रों में
पर  नज़र  नहीं  उठती


धड़कने  बजती हैं  ज़ोर से
पर  गुुम होती है  कहीं  एक