अपनी सपनीली दुनिया की
मैं
अकेली परी हूँ
यहाँ फूल मुस्काते
हैं
पेड़ खिलखिलाते
हर
एक पहाड़
हैं वादियों में गीत गाते
हवाएँ जब चलती
हैं
ठुमककर लहराती
प्रकृति मगन हो
शांति गुनगुनाती
आसमां का विस्तार न
बाँहों में नाप पाती
पिता सा वृहद् रूप
हूँ
उसमें ही पाती
धरती की गोदी में
झूलती है ये हस्ती
घूमती फिरती हूँ
निडर हो मैं हँसती
भौरें आ संदेशा सुनाते
पंख
तितलियों के
मुझको लुभाते
जब
भी मैं गुमसुम हूँ
बैठी पकड़े किनारा
छेड़ना मुझे कभी ना
वहीँ होता अस्तित्व सारा
उस
दुनिया की सैर से
जब
आती यहाँ पर
लगता है यह संसार
मुझको प्यारा प्यारा
चित्र साभार गूगल
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदय।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंपल्लवी जी, बहुत अच्छी लगी आपकी दूनिया!
जवाब देंहटाएंमेरी दुनिया को पसन्द करने के लिए धन्यवाद है आपको....
हटाएंपल्लवी मैम, आपकी सपनीली दुनिया कितनी खूबसूरत है काश यह मूर्त रूप ले पाती ।
जवाब देंहटाएंएक ही बात है सुधा मैम.... इस दुनिया में मैं मूर्त हो जाती हूँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंDhanyawaad Madhulika ji.
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