जिंदगी नहीं है फूलों की सेज,
जिसे बिछा कर इंसान सो सके
जिंदगी नहीं है मखमली कालीन ,
जिसके गुजगुजेपन पर बेफिक्र हो सके
जिंदगी नहीं है पंखे की हवा ,
जहाँ स्वेद कणों को धो सके
जिंदगी नहीं है चाय का धुआँ,
जो आरामकुर्सी पर बैठ ले सकें
जिंदगी नहीं है कार की पिछली सीट
जहाँ मनचाही नींद का आनंद उठा सकें
जिंदगी नहीं है कार की पिछली सीट
जहाँ मनचाही नींद का आनंद उठा सकें
जिंदगी कदापि नहीं कोने का कमरा ,
जहाँ सदैव सुरक्षा की साँस ले सकें
जिंदगी का हर एक पल है संघर्ष ,
जिसे ओढ़ कर शायद यह सफल हो सके
जिंदगी के हर एक पल में है नया दुःख ,
इस सागर में तैरकर सुख के मोती निकल सके
जिंदगी का हर एक पल है हिम्मत ,
माला को फेर ही विजय पताका फहर सके
पल्लवी गोयल
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