फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

औरत


औरत ! तू है क्या
 बेचारी ,अभागी, सुकुमारी ?

जब  दुनिया में,
शक्ति रूप प्रतिष्ठित,
'जगदम्बा' नारी रूप में ,
तू कहलाती अबला नारी !

कवियों द्वारा दिया
 नाम 'चंद्रमुखी' ,
सुनते ही तू शर्मा गई .
छुइ मुई बन, डोले में बैठ,
बादलों के रथ पर सवार,
 तू घर आ गई .

अच्छा है, पद माता
का है तुझे निभाना.
भार्या बन, पति का 
आदेश निभाना.

पर  भूल न जाना वह रूप,
 जो लक्ष्मीबाई ने दिखाया मैदानों में,
गार्गी ने दिखाया दरबारों में .

माता ,पत्नी ,बहू , बेटी का धर्म
निभाना है, तुझे इस धरती पर.

पर भूल न जाना -
तू बनी है किस मिट्टी  से !
अपने अस्तित्व  की माटी का
कर्ज अदा करना है अभी .

अपनी पहचान को कभी 
अपने से जुदा  मत होने देना.

तुम्हारी पहचान छीनने वालों पर,
प्रहार करने से न चूकना .
सम्मान करने वालों को
प्रणाम करना भी मत भूलना .  

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना पल्लवी मैम।👍👌☺

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम्हारी पहचान छीनने वालों पर,
    प्रहार करने से न चूकना .
    सम्मान करने वालों को
    प्रणाम करना भी मत भूलना .
    प्रेरक रचना...सशक्त रचना👌👌👌

    जवाब देंहटाएं