औरत ! तू है क्या
बेचारी ,अभागी, सुकुमारी ?
जब दुनिया में,
शक्ति रूप प्रतिष्ठित,
'जगदम्बा' नारी रूप में ,
तू कहलाती अबला नारी !
कवियों द्वारा दिया
नाम 'चंद्रमुखी' ,
सुनते ही तू शर्मा गई .
छुइ मुई बन, डोले में बैठ,
बादलों के रथ पर सवार,
तू घर आ गई .
अच्छा है, पद माता
का है तुझे निभाना.
भार्या बन, पति का
आदेश निभाना.
आदेश निभाना.
पर भूल न जाना वह रूप,
जो लक्ष्मीबाई ने दिखाया मैदानों में,
गार्गी ने दिखाया दरबारों में .
माता ,पत्नी ,बहू , बेटी का धर्म
निभाना है, तुझे इस धरती पर.
पर भूल न जाना -
तू बनी है किस मिट्टी से !
अपने अस्तित्व की माटी का
कर्ज अदा करना है अभी .
अपनी पहचान को कभी
अपने से जुदा मत होने देना.
तुम्हारी पहचान छीनने वालों पर,
प्रहार करने से न चूकना .
सम्मान करने वालों को
प्रणाम करना भी मत भूलना .
बहुत सुन्दर रचना पल्लवी मैम।👍👌☺
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, सुधा मैम।
जवाब देंहटाएंतुम्हारी पहचान छीनने वालों पर,
जवाब देंहटाएंप्रहार करने से न चूकना .
सम्मान करने वालों को
प्रणाम करना भी मत भूलना .
प्रेरक रचना...सशक्त रचना👌👌👌
धन्यवाद आदरणीय पुरुषोत्तम जी ।
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