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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

रुठो मेरे मन




रुठो मेरे मन,

एक बार और रूठो तुम।


जो तुम रूठोगे ऐसे,

सब तुम्हें मनाएंगे कैसे न कैसे।

कभी इधर -कभी उधर ,आएंगे ,

आगे कभी पीछे झांक के जाएंगे।


देख -देख कर इनको,

आप ही हँस लेना ।

मन ही मन गदगद हो,

ऊपर से थोड़ा और रूठना ।


मौकापरस्त बन अवसर का ,

इस समय लाभ उठाना।

परिवार के सदस्यों के मनों,

के साथ पिकनिक पर जाना।


पर रूठ कर उन्हें

जरा और दिखाना।


किसी के मित्रों की भीड़ ,

दो मिनट के लिए थम जाएगी।

किसी के कंप्यूटर का कर्सर,

शायद पाँच सेकंड के लिए जम जाएगा।


कोई पानी पीने किचन में आएगा,

अपनी भरपूर नजरों से पिघलाएगा।

तो कोई फोन करके प्यार से,

किचन का मैन्यू भी बुलवाएगा।


अकेलेपन की इस भीड़ का मज़ा,

तुम बेहिचक उठाते रहना।

धीरे से प्रत्यक्ष में मुस्करा देना,

पूरे परिवार को खिलखिलाकर,

हँसने का एक मौका अवश्य देना।
पल्लवी गोयल

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

काश!


काश! कि ये हो पाता,
छोटा सा तू, जो धड़कता है।
इन नामुराद पसलियों के बीच,
तुझे आकार देना खुदा,
भूल जाता या तू खो जाता।
तो बेदर्द दर्द, बेसहारा, गुमशुदा,
लावारिस हो अपनी राह लेता।
जो बनाए बैठा है तुझे अपना घर
यही है सारे दीवानेपन की जड़।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार


सोमवार, 2 जुलाई 2018

हे अज़नबी!


अजनबी !तुम कहाँ से आए
खिल मुस्कान ,तनिक मुस्काए

एक सिरे की बात बहुत थी
पकड़ पकड़ ऊपर चढ़ आए

कहाँ कहाँ की कही कहानी
कहाँ कहाँ की बातें खोदीं

झोली पर झोली खोली
बातों की होली खेली

बातों का बन तेज़ बवंडर
इधर-उधर यूँ ही मॅडराए

लहर लहर कर भहर गए तुम
भहर उठे फिर नज़र न आए

तुम ऐसे ही हो या बने आज हो
जीवन के फिरते सुर साज हो

बातें भोली या मतवारी
कुछ अनोखी, कुछ न्यारी

बात रस का विशुद्ध मज़ा
आज तुमको लख जान लिया

बातूनी  का अर्थ,उदाहरण
दोनों का ही स्वाद चखा

हे अजनबी तुम अजनबी ही
रहो ,तुमको न जानूंगी मैं

इस शब्द के अर्थ के भीतर
छिपा जीवित मानूंगी मैं ।

पल्लवी गोयल


गुरुवार, 7 जून 2018

रिश्ता

कभी कभी सोचती  हूँ कि
रिश्ते दूरी से नहीं,
 दिलों से नापे जाते हैं ।

क्योंकि अक्सर एक दरवाजे से
दूसरे दरवाजे तक का सफ़र
तय करने में बरसों गुजर जाते हैं ।

पल्लवी गोयल 

मंगलवार, 5 जून 2018

तेरा

 कभी रेशम के कुछ धागे बुने
कभी फूलों के कुछ सांचे रचे
नाम  तो तेरा कहीं न लिखा था
बुनावट की हर गूँथ पर ,मन
कहता था,यह तेरा था।

पल्लवी गोयल

पुकार


दिल के रोम रोम से
जो तुझे पुकारा है
क्या सुनता है तू
कि तुझे कुछ भी
सुनना गवारा है।

न यहाँ ,न  वहाँ
नज़र आता है तू
सब कहते हैं
तूने ख़ुद को मेरे
पास सॅवारा है।

पल्लवी गोयल 

दर्द


 जब दर्द कुछ 
इतना बढ़ जाए 
हर इंतहां को 
पार  करता हुआ 
बस बेइंतहा हो जाए    
बोल पड़ती हूं 
मैं भी खुदा से 
याद कर बनाया था 
तूने ही मुझे भी 
हक असबाब  तमाम 
तूने दुनिया को दिए   
कुछ रोक इधर 
ताकि मैं भी
ठहर सकूं यहीं ।

पल्लवी गोयल