अनकहे अल्फाज़ों को
हवा में बहने दो।
कुछ अनकही रही थी
वह सुनने दो।
भीनी हवा का रुख
यूँ बहने दो।
अनपहचाने का अक्स
जेहन में तिरने दो।
मिलेंगे उनसे जब
तो पहचानेंगे ।
पहचान पुरानी थी
या कि नयी।
अनदेखी दुनिया में
देखा था जिनको।
मिले जो आज
क्या हैं वही।
पल्लवी गोयल
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय, रचना को चर्चा मंच प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंअनकहे अल्फाज़ों को
जवाब देंहटाएंहवा में बहने दो...वाह!बहुत सुंदर।
सादर
आदरणीया, रचना को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए सादर आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीया, ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। सादर आभार।
हटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय गगन जी सादर आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर सृजन
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