आज जो देखा है उनको,
कल भी था उनको देखा ।
भावों की सरिता में बहते ,
बहते भावों को उनमें देखा ।
चलते चलते कभी न रुकते,
थमते न उनको देखा ।
हर रोज नदिया उछल- उछल
कर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
नतमस्तक होता है मन ।
उनकी चाल है स्थिर प्रज्ञा ,
श्रद्धा सुमन उनको अर्पण।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
सादर आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहद उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आँचल जी ।
हटाएंभावपूर्ण सृजन !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीया।रचना पसंद करने के लिए सादर आभार ।
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट - कविता २
आदरणीय ब्लॉग पर आपका स्वागत है। सराहना के लिए आभार।
हटाएंबहुत अच्छी कविता |हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है स्नेह बनाए रखें आदरणीया।
हटाएंहर रोज नदिया उछल- उछल
जवाब देंहटाएंकर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
नतमस्तक होता है मन ----बहुत खूब लिखा है आपने।
आभार आदरणीय।
हटाएंवाह बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय हर्ष जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है यूँ ही स्नेह बनाए रखिए।
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