आज जो देखा है उनको,
कल भी था उनको देखा ।
भावों की सरिता में बहते ,
बहते भावों को उनमें देखा ।
चलते चलते कभी न रुकते,
थमते न उनको देखा ।
हर रोज नदिया उछल- उछल
कर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
नतमस्तक होता है मन ।
उनकी चाल है स्थिर प्रज्ञा ,
श्रद्धा सुमन उनको अर्पण।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'बुधवार' २६ फ़रवरी २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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सादर आभार आदरणीय ।
हटाएंवाह बेहद उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आँचल जी ।
हटाएंभावपूर्ण सृजन !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीया।रचना पसंद करने के लिए सादर आभार ।
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट - कविता २
आदरणीय ब्लॉग पर आपका स्वागत है। सराहना के लिए आभार।
हटाएंबहुत अच्छी कविता |हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है स्नेह बनाए रखें आदरणीया।
हटाएंहर रोज नदिया उछल- उछल
जवाब देंहटाएंकर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
नतमस्तक होता है मन ----बहुत खूब लिखा है आपने।
आभार आदरणीय।
हटाएंवाह बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय हर्ष जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है यूँ ही स्नेह बनाए रखिए।
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