तेरा रूठ जाना,मेरा तुझको मनाना ।
तिरछे से देखना ,फिर खिलखिलाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....
तेरा टकटकी लगाना ,मेरा नजरें झुकाना ।
नजरें हटते ही तेरी ,मेरा पलके बिछाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....
तेरी याद आना ,फिर पलकों में आना ।
जरा पलटते ही तेरा ,मुझे चौंकाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....
पलकों के मूंदते ही आना, उनमें समाना,
हक जमाना ,हटाए न जाना ।
अब तू भूलता ही नहीं।
पल्लवी गोयल
चित्र yourquote से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ।
सादर।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-१२-२०१९ ) को " पूस की ठिठुरती रात "(चर्चा अंक-३५४९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
धन्यवाद महोदया ।
हटाएंकुछ बातें दिल से नहि जातीं ...
जवाब देंहटाएंउन्ही को संजो के लिखी सुंदर रचना ...
रचना पसंद करने के लिए आभार आदरणीय दिगम्बर जी ।
हटाएंगहरी संवेदना समेटे सुंदर एहसास।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम लेखन।
बहुत-बहुत धन्यवाद सखी।
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंअपनी अनुभूतियों को शब्द दिए हैं ... लाजवाब ...
जी आभार आदरणीय।
हटाएंसुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंजी आभार आदरणीय ।
हटाएंबहुत सरस रचना है |
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है आदरणीय ।रचना पसंद करने के लिए आभार।
हटाएंबहुत सुंदर, बहुत भावपूर्ण, हृदय-विजयिनी अभिव्यक्ति ।
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