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शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

इक ख्वाब परेशाँ करता है

 इक ख्वाब परेशाँ करता है

सच हो जाता तो 

क्या अच्छा होता।

दिल के हुए 

हज़ार टुकडे

जुड़ जाते तो 

क्या अच्छा होता।

न फिक्र किसी  

की होती हमको

न दर्द कहीं 

पर होता।

इक ख्वाब परेशाँ करता है

सच होता तो क्या अच्छा होता।

पल्लवी गोयल

4 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-7-22}
    को बादलों कीआँख-मिचौली"(चर्चा अंक 4493)
    पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर। बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  3. उस ख़्वाब के विषय में आपने स्पष्टतः तो नहीं बताया पल्लवी जी। कविता को पढ़कर अनुमान ही लगाया जा सकता है। लेकिन आपकी अभिव्यक्ति अच्छी है एवं वह ख़्वाब पूरा हो, यह मेरी शुभकामना है।

    जवाब देंहटाएं