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गुरुवार, 9 जून 2022

विषपान करो !

 


विषपान करो !

जग दाता है ,

ना समझो 

वह अमृत देगा ।

जीना है 

उसके हक में  

मरना वह 

तुमको देगा।

नीलकंठ  बन 

धरो गले में ,

दिल दिमाग 

से दूर रखो।

व्यक्ति, व्यक्ति 

लालच देगा,

प्रेम ,झूठ का 

धंधा होगा ।

फिर आशा की 

बेल का झुलसा, 

सूखा फाँसी का 

फंदा होगा।

जीना खुद का 

खुद पर रखो।

जग को बस 

उससे दूर रखो।

याद रखो तुम 

अपने में पूरे।

विश्वास रखो 

और बढ़े चलो।

पल्लवी गोयल

10 टिप्‍पणियां:

  1. विश्वास रखो

    और बढ़े चलो।
    वाह सुंदर संदेशप्रद रचना !!

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    उत्तर
    1. आदरणीया
      ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. आदरणीय
      ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण कविता
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय
      ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।

      हटाएं
  4. मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें

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  5. आदरणीय,
    चर्चामंच में रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार ।

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  6. बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना ।

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