चंदन की खुशबू में लिपटा
प्राणों का वह स्वर बोला ।
सुनी तुमने वह आवाज़
जो कहीं हौले से पत्ता डोला ।
क्या है यह, उनके आने की आहट
कानों में जो बजती तान।
धरती के कंपन का हुआ शुरू
मधुर मधुर सुरीला गान ।
मारुत की स्निग्ध बयार
बासी हो जब तन छूने आती ।
पलकें मिलन के स्वप्निल आनंद में
भीग भीग मुझ तक आतीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें