फ़ॉलोअर

रविवार, 24 अगस्त 2025

अजनबी तुम

 


तुम्हारी जगह और मेरी जगह, 

एक स्थान पर नहीं हो सकती, 

यह मुझे समझना होगा।

मेरा दिल तुम्हारा घर बन सकता है,

बस वही पर तुम्हें रहना होगा। 

बीते हुए अच्छे समय की 

झालरों से सजा है वह घर।

उसी समय के 'तुम' के साथ 

अब मुझे जीना होगा ।

नया 'तुम' पुराने 'तुम' को निगल जाएगा।

मुझे  इस नये 'तुम'से बचाना होगा ।

सूरज की किरणें, झरने का पानी 

चलने के बाद नहीं लौटते ।

चल चुके हम वहाँ से 

क्या हमें लौटना?

 पका फल खा चुके हैं हम 

क्या हमें सड़न से है मिलना?

 प्रेम से मिल चुके मन को 

क्या नफ़रत से  है मिलना?

 चलो !जाने-पहचाने इस 

रिश्ते को नया नाम दें।

अब अजनबी ही हमको रहना।

पल्लवी गोयल 

(चित्र साभार गूगल)


शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

इक ख्वाब परेशाँ करता है

 इक ख्वाब परेशाँ करता है

सच हो जाता तो 

क्या अच्छा होता।

दिल के हुए 

हज़ार टुकडे

जुड़ जाते तो 

क्या अच्छा होता।

न फिक्र किसी  

की होती हमको

न दर्द कहीं 

पर होता।

इक ख्वाब परेशाँ करता है

सच होता तो क्या अच्छा होता।

पल्लवी गोयल

गुरुवार, 9 जून 2022

विषपान करो !

 


विषपान करो !

जग दाता है ,

ना समझो 

वह अमृत देगा ।

जीना है 

उसके हक में  

मरना वह 

तुमको देगा।

नीलकंठ  बन 

धरो गले में ,

दिल दिमाग 

से दूर रखो।

व्यक्ति, व्यक्ति 

लालच देगा,

प्रेम ,झूठ का 

धंधा होगा ।

फिर आशा की 

बेल का झुलसा, 

सूखा फाँसी का 

फंदा होगा।

जीना खुद का 

खुद पर रखो।

जग को बस 

उससे दूर रखो।

याद रखो तुम 

अपने में पूरे।

विश्वास रखो 

और बढ़े चलो।

पल्लवी गोयल

शुक्रवार, 13 मई 2022

इंसान ?

 रिसता रहता जब तक 

दिलों में रिश्ता कहलाता है।

सूखे दिलों का मेल 

पराया बन जाता है।


साथी के कंधे पर झुकना 

विश्वास कहलाताहै। 

झुके पर आघात 

विश्वासघात  बन जाता है।


टूटे को और न तोड़ने देने का

 प्रयास प्रतिरोध कहलाता है।

तोड़ने वाले को तोड़ देना 

प्रतिशोध बन जाता है।


लड़खड़ाए को लकड़ी देना

 सहारा कहलाता है।

 उसकी गठरी हथिया लेने वाला 

कपटी बन जाता है।


पहले नियम पर चलने वाला 

व्यक्ति इंसान कहलाता है

दूसरे नियम को अपनाने वाला 

सांसारिक बन जाता है।


सांसारिक इंसान न बने 

वह सफल कहलाता है।

इंसान इंसान ही रहे 

वह मूर्ख बनता जाता है।

पल्लवी गोयल 

रविवार, 5 दिसंबर 2021

आँसू

 


दुनिया के इस रंगमंच पर 

खेले गये अंक कई।


दुख से भरी गाथाओं से

आँसू झर- झर गये कई।


कुछ लोगों  ने देखे केवल

जुड़कर आए साथ कई।


जिन्होंने हाथ बढ़ाए आगे 

बाद में किए सौदे कई।

पल्लवी गोयल

शनिवार, 3 जुलाई 2021

अक्स

 अनकहे अल्फाज़ों  को 

हवा में बहने दो।

कुछ अनकही रही थी

 वह सुनने दो।

भीनी हवा का रुख 

यूँ  बहने दो।

अनपहचाने का अक्स    

 जेहन में  तिरने दो।

मिलेंगे उनसे जब 

 तो पहचानेंगे ।

 पहचान पुरानी थी 

या कि नयी।

अनदेखी  दुनिया में

 देखा था जिनको।

मिले जो आज 

क्या हैं वही।

पल्लवी गोयल 

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

भाव सरिता


आज जो देखा है उनको,
 कल भी था उनको देखा ।
भावों की सरिता में बहते ,
बहते भावों को उनमें देखा ।
चलते चलते कभी न रुकते,
 थमते न उनको देखा ।
हर रोज नदिया उछल- उछल
कर सागर में रमते देखा ।
ऑंखें मेरी टिकी हुई हैं,
 नतमस्तक होता है मन ।
उनकी चाल है स्थिर प्रज्ञा ,
 श्रद्धा सुमन उनको अर्पण।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार