जिंदगी तेरा शुक्रिया !
जो तूने मुझे चुना।
जब खुशियाँ दी तूने,
मैंने आसमान छुआ।
जब दु:ख दिये तूने,
मैंने अंतस को छुआ।
भीतर-बाहर दोनों का
रस,भर-भर के पिया।
तू जो भी दे मुझे ,
दिल से स्वीकार है।
तेरे हर रंग का मुझे,
रहता इंतजार है।
नज़र नहीं आती मुझको ख्वाबों सी वह तस्वीर असलियत में कहीं। अंतर्मन की गाथा कहते ये शब्द ही मेरे अज़ीज़ हैं ........
जिंदगी तेरा शुक्रिया !
जो तूने मुझे चुना।
जब खुशियाँ दी तूने,
मैंने आसमान छुआ।
जब दु:ख दिये तूने,
मैंने अंतस को छुआ।
भीतर-बाहर दोनों का
रस,भर-भर के पिया।
तू जो भी दे मुझे ,
दिल से स्वीकार है।
तेरे हर रंग का मुझे,
रहता इंतजार है।
तुम्हारी जगह और मेरी जगह,
एक स्थान पर नहीं हो सकती,
यह मुझे समझना होगा।
मेरा दिल तुम्हारा घर बन सकता है,
बस वही पर तुम्हें रहना होगा।
बीते हुए अच्छे समय की
झालरों से सजा है वह घर।
उसी समय के 'तुम' के साथ
अब मुझे जीना होगा ।
नया 'तुम' पुराने 'तुम' को निगल जाएगा।
मुझे इस नये 'तुम'से बचाना होगा ।
सूरज की किरणें, झरने का पानी
चलने के बाद नहीं लौटते ।
चल चुके हम वहाँ से
क्या हमें लौटना?
पका फल खा चुके हैं हम
क्या हमें सड़न से है मिलना?
प्रेम से मिल चुके मन को
क्या नफ़रत से है मिलना?
चलो !जाने-पहचाने इस
रिश्ते को नया नाम दें।
अब अजनबी ही हमको रहना।
पल्लवी गोयल
(चित्र साभार गूगल)