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शुक्रवार, 13 मई 2022

इंसान ?

 रिसता रहता जब तक 

दिलों में रिश्ता कहलाता है।

सूखे दिलों का मेल 

पराया बन जाता है।


साथी के कंधे पर झुकना 

विश्वास कहलाताहै। 

झुके पर आघात 

विश्वासघात  बन जाता है।


टूटे को और न तोड़ने देने का

 प्रयास प्रतिरोध कहलाता है।

तोड़ने वाले को तोड़ देना 

प्रतिशोध बन जाता है।


लड़खड़ाए को लकड़ी देना

 सहारा कहलाता है।

 उसकी गठरी हथिया लेने वाला 

कपटी बन जाता है।


पहले नियम पर चलने वाला 

व्यक्ति इंसान कहलाता है

दूसरे नियम को अपनाने वाला 

सांसारिक बन जाता है।


सांसारिक इंसान न बने 

वह सफल कहलाता है।

इंसान इंसान ही रहे 

वह मूर्ख बनता जाता है।

पल्लवी गोयल 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मनुष्य मन की भावनाएं और रिश्तों का ताना-बाना यही तो है जीवन यात्रा का मोह में उलझा हुआ सांसारिकता का सार।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति पल्लवी जी।
    काफी लंबे अंतराल के बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली बहुत अच्छा लग रहा।

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    उत्तर
    1. प्रिया श्वेता जी ,
      आपका स्नेह संदेश पढ़कर अत्यंत हर्ष हुआ। अनेक परिस्थितियों और व्यस्तता के कारण वास्तव में लंबे समय तक ब्लॉग पर नहीं आ पाई । रचना पसंद करने के लिए स्नेह आभार।

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