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गुरुवार, 16 मई 2019

हे सुंदरी! तुम कौन हो?



हे सुंदरी! तुम कौन?
कुछ अपनी  सी लगती हो।

हजारों सालों की दूरी सही,
पर प्रीत पुरानी लगती है।

गुमसुम चुप सा ठहर गया यूँ ,
समय यहाँ और वहाँ  कोई ।

वक्त ने खड़ी इस बार भी
की ,फिर  नयी दीवार  वहीं।

हे प्रिये! तुम यूँ ही  रहो,
अपलक  तुम्हें  निहारूंगा मैं।

सौ जान तुम्हारी एक अदा
पर ,बार -बार वारूंगा  मैं।

मुझे  देख खुश होती हो तो
समझ लो बस इतनी-सी बात ।

इस घनेरी  हँसी के  आगे,
बिक जाऊँ ,बिन मोल के हाथ।

मैं  भूत का साया  भले हूँ ,
तुम  भविष्य का उजला गात।

मेरी तेरी  प्रीत के आगे ,
वक्त की  नहीँ  कोई  औकात ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

19 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपकी सराहना लेखन का उत्साह बढ़ाती है।
      सादर आभार ।

      हटाएं

  2. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    19/05/2019 को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय,
      लंबे समय बाद चर्चा का हिस्सा बन कर खुशी हो रही है।
      सादर आभार ।

      हटाएं
  3. वाह बहुत अलग सी उम्दा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. हे प्रिये! तुम यूँ ही रहो,
    अपलक तुम्हें निहारूंगा मैं।
    सौ जान तुम्हारी एक अदा
    पर ,बार -बार वारूंगा मैं।
    वाह!!!
    बहुत सुंदर.... लाजवाब...।

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीय,
    रचना को सम्मान देने के लिए हृदय से आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  6. रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सौ जान तुम्हारी एक अदा
    पर ,बार -बार वारूंगा मैं।
    वाह!!!
    बहुत सुंदर.... लाजवाब...।

    जवाब देंहटाएं