हे सुंदरी! तुम कौन?
कुछ अपनी सी लगती हो।
हजारों सालों की दूरी सही,
पर प्रीत पुरानी लगती है।
गुमसुम चुप सा ठहर गया यूँ ,
समय यहाँ और वहाँ कोई ।
वक्त ने खड़ी इस बार भी
की ,फिर नयी दीवार वहीं।
हे प्रिये! तुम यूँ ही रहो,
अपलक तुम्हें निहारूंगा मैं।
सौ जान तुम्हारी एक अदा
पर ,बार -बार वारूंगा मैं।
मुझे देख खुश होती हो तो
समझ लो बस इतनी-सी बात ।
इस घनेरी हँसी के आगे,
बिक जाऊँ ,बिन मोल के हाथ।
मैं भूत का साया भले हूँ ,
तुम भविष्य का उजला गात।
मेरी तेरी प्रीत के आगे ,
वक्त की नहीँ कोई औकात ।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
बेहतरीन रचना .....
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी ।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना लेखन का उत्साह बढ़ाती है।
हटाएंसादर आभार ।
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/05/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आदरणीय,
हटाएंलंबे समय बाद चर्चा का हिस्सा बन कर खुशी हो रही है।
सादर आभार ।
वाह बहुत अलग सी उम्दा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदया ।
हटाएंहे प्रिये! तुम यूँ ही रहो,
जवाब देंहटाएंअपलक तुम्हें निहारूंगा मैं।
सौ जान तुम्हारी एक अदा
पर ,बार -बार वारूंगा मैं।
वाह!!!
बहुत सुंदर.... लाजवाब...।
धन्यवाद सुधा जी ।
हटाएंलाजवाब ..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदया ।
हटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंरचना को सम्मान देने के लिए हृदय से आभार ।
सादर ।
रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
प्रिय ज्योति जी,
जवाब देंहटाएंसादर आभार ।
सौ जान तुम्हारी एक अदा
जवाब देंहटाएंपर ,बार -बार वारूंगा मैं।
वाह!!!
बहुत सुंदर.... लाजवाब...।
धन्यवाद संजय जी।
हटाएंbahut hi sundar rachna .
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
धन्यवाद महोदय।
हटाएं