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गुरुवार, 8 अगस्त 2019

तन्हाई


जिंदगी के
गिलास में 
ये तन्हाई 
जो ढाली  है 
न साकी 
न हमघूँट  कोई 
न ईद 
न दिवाली है 
न आता 
न जाता कोई 
बस मैं  थोड़ी और 
'ये' डाली है
 पीता   ही 
चला  जाता  हूँ। 
न  होता   ये खाली है 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचना की
    "जिंदगी के
    गिलास में
    ये तन्हाई
    जो ढाली है"
    से लेकर
    "पीता ही
    चला जाता हूँ।
    न होता ये खाली है "
    तक मन की बात लगती है। इंसान की तन्हाई उसी दिन ख़त्म होती है, जिस दिन उसको शत्-प्रतिशत समझने वाला उसे मिल पाता है
    बहुत प्यारी बिम्ब ...

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    उत्तर
    1. आदरणीय सुबोध जी,
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
      रचना पर इस सुंदर प्रतिक्रिया के
      लिए हृदय से आभारी हूँ ।

      हटाएं
  2. आदरणीय विश्वमोहन जी सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय अनीता जी,
    रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/08/2019 की बुलेटिन, "काकोरी कांड के सभी जांबाज क्रांतिकारियों को नमन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. वाह सखी बहुत ही गहरी बात, मन का एकाकी पन
    आखिर ऐसा ही होता है।

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  6. एकाकी मन के अहसास की खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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