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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

रुठो मेरे मन




रुठो मेरे मन,

एक बार और रूठो तुम।


जो तुम रूठोगे ऐसे,

सब तुम्हें मनाएंगे कैसे न कैसे।

कभी इधर -कभी उधर ,आएंगे ,

आगे कभी पीछे झांक के जाएंगे।


देख -देख कर इनको,

आप ही हँस लेना ।

मन ही मन गदगद हो,

ऊपर से थोड़ा और रूठना ।


मौकापरस्त बन अवसर का ,

इस समय लाभ उठाना।

परिवार के सदस्यों के मनों,

के साथ पिकनिक पर जाना।


पर रूठ कर उन्हें

जरा और दिखाना।


किसी के मित्रों की भीड़ ,

दो मिनट के लिए थम जाएगी।

किसी के कंप्यूटर का कर्सर,

शायद पाँच सेकंड के लिए जम जाएगा।


कोई पानी पीने किचन में आएगा,

अपनी भरपूर नजरों से पिघलाएगा।

तो कोई फोन करके प्यार से,

किचन का मैन्यू भी बुलवाएगा।


अकेलेपन की इस भीड़ का मज़ा,

तुम बेहिचक उठाते रहना।

धीरे से प्रत्यक्ष में मुस्करा देना,

पूरे परिवार को खिलखिलाकर,

हँसने का एक मौका अवश्य देना।
पल्लवी गोयल