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गुरुवार, 16 मई 2019

हे सुंदरी! तुम कौन हो?



हे सुंदरी! तुम कौन?
कुछ अपनी  सी लगती हो।

हजारों सालों की दूरी सही,
पर प्रीत पुरानी लगती है।

गुमसुम चुप सा ठहर गया यूँ ,
समय यहाँ और वहाँ  कोई ।

वक्त ने खड़ी इस बार भी
की ,फिर  नयी दीवार  वहीं।

हे प्रिये! तुम यूँ ही  रहो,
अपलक  तुम्हें  निहारूंगा मैं।

सौ जान तुम्हारी एक अदा
पर ,बार -बार वारूंगा  मैं।

मुझे  देख खुश होती हो तो
समझ लो बस इतनी-सी बात ।

इस घनेरी  हँसी के  आगे,
बिक जाऊँ ,बिन मोल के हाथ।

मैं  भूत का साया  भले हूँ ,
तुम  भविष्य का उजला गात।

मेरी तेरी  प्रीत के आगे ,
वक्त की  नहीँ  कोई  औकात ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार