एक पत्र था वह
मेरे अरमानों का
कुछ बातें थीं
कुछ यादें थीं
कुछ मुलाकातों का
जिक्र वहीं था
कुछ टूटे का
काँच वहीं था
कुछ कसमें थीं
कुछ वादे थे
टूटे संभले से
इरादे थे
कुछ कहे अनकहे
जुमले थे
कुछ सुने अनसुने
किस्से थे
कुछ चोटों का
मर्म वही था
कुछ दुखड़ोंका
गम भी वहीं था
कुछ आंखों की
नरमी थी
कुछ सांसों की
गर्मी थी
भावों के जाम
शब्दों में उडेले थे
लड़खड़ाते इधर-उधर
फैले थे
झरना था या
बांध कोई टूटा
जिधर निकलता
सब कुछ बदलता
बेहतर था वह
मेरे पास रहे
निर्माता के यादों का
बस साक्षी बने।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना बुधवार ६ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता जी,
हटाएंनमस्कार । रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद ।
बहुत खूब.... ,सुंदर सृजन पल्लवी जी ,सादर
जवाब देंहटाएंरचना पसंद करने के लिए धन्यवाद कामिनी जी।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी ।
हटाएंबढ़िया 👌 👌 👌
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद ।
हटाएंबहुत सुंदर, स्नेहाशीष
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है आदरणीय ।
हटाएंअपना स्नेह व आशीष बनाए रखिएगा ।
सादर ।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय। ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
हटाएं