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शनिवार, 28 नवंबर 2015

जिंदगी

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जिंदगी नहीं है फूलों की सेज,
जिसे बिछा  कर इंसान सो सके


जिंदगी नहीं है मखमली कालीन ,
जिसके गुजगुजेपन पर बेफिक्र हो सके 


जिंदगी नहीं है पंखे की हवा ,
जहाँ  स्वेद कणों  को धो सके 


जिंदगी नहीं है चाय का धुआँ,
जो आरामकुर्सी पर बैठ  ले सकें

जिंदगी नहीं है कार की पिछली सीट 
जहाँ मनचाही नींद का आनंद उठा सकें 


जिंदगी  कदापि नहीं कोने का कमरा ,
जहाँ  सदैव सुरक्षा की साँस ले सकें 





जिंदगी का हर एक पल है संघर्ष ,
जिसे ओढ़ कर शायद यह सफल हो सके 


जिंदगी के हर एक पल में है नया दुःख ,
 इस सागर में तैरकर  सुख के मोती निकल सके 



जिंदगी का हर एक पल है हिम्मत ,
माला को फेर ही विजय पताका फहर सके
                                                 
                                                         पल्लवी गोयल



शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

क्यों ?

Beautiful Night Sky Wallapers (20)




बात आती है  जुबाँ पर
पर  लफ्ज़  नहीं  होते 


चित्र  बसा है  नज़रों में
पर  नज़र  नहीं  उठती


धड़कने  बजती हैं  ज़ोर से
पर  गुुम होती है  कहीं  एक

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

सच्चा दोस्त

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आपके दर्द  की  एक मुस्कान पर 
जो एक  शख्स   आता 
है  आपके  करीब। 
आपके  घावों पर  मलहम  लगा, 
चेहरे पर मुस्कान  भी  सजाता  है। 
वह  न केवल  अच्छा  इंसान  होता है, 
वह  आपका  अपना भी  होता है। 
जो नहीं  देखता,  
दिन  बुरा  है  या  अच्छा,
हाल  अच्छा है कि  खस्ता 
वह  देखता है 
चेहरे की  एक  रेखा 
और  सभी  मुश्किलें , 
खुशियों  में बदल  देता है 
वह आपका सच्चा  दोस्त  होता  है
                                  

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

तेरी मुस्कान

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हर पल
तेरे चेहरे
की शक्ल में
तेरी मूरत आती है,
गोता  लगाती है,
खिलखिलाती है,

खाला जी का घर समझ
यहीं पर बस जाती है

क्या तुझे और
नहीं कोई काम ?

क्षण  भर को न लेती
मुस्कराने से विश्राम

जा ! खाली  कर दे
इस रास्ते  को
गुजरना  है अभी
औरों  को भी
इस दर से


बहुत ही निर्लज्जा  बनी मैं
कठोरहृदया , दिया तुझे वज्राघात

परन्तु इन चार पंक्तियों के
इस विचार को
क्यों न कर पाई  आत्मसात ?

जो प्रहार किया था तुझपर
पूरे वेग से आ पड़ा
मुझ ही पर

तेरे चेहरे पर तिरती
यह मुस्कान
क्यों नहीं उतरती
मेरे मुख पर