एक पत्र था वह
मेरे अरमानों का
कुछ बातें थीं
कुछ यादें थीं
कुछ मुलाकातों का
जिक्र वहीं था
कुछ टूटे का
काँच वहीं था
कुछ कसमें थीं
कुछ वादे थे
टूटे संभले से
इरादे थे
कुछ कहे अनकहे
जुमले थे
कुछ सुने अनसुने
किस्से थे
कुछ चोटों का
मर्म वही था
कुछ दुखड़ोंका
गम भी वहीं था
कुछ आंखों की
नरमी थी
कुछ सांसों की
गर्मी थी
भावों के जाम
शब्दों में उडेले थे
लड़खड़ाते इधर-उधर
फैले थे
झरना था या
बांध कोई टूटा
जिधर निकलता
सब कुछ बदलता
बेहतर था वह
मेरे पास रहे
निर्माता के यादों का
बस साक्षी बने।
पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार