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गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

भूलता ही नहीं


तेरा रूठ जाना,मेरा तुझको मनाना ।
तिरछे से देखना ,फिर खिलखिलाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....

तेरा टकटकी लगाना ,मेरा नजरें झुकाना ।
नजरें हटते ही तेरी ,मेरा पलके बिछाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....

तेरी याद आना ,फिर पलकों में आना ।
जरा पलटते ही तेरा ,मुझे चौंकाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....

पलकों के मूंदते ही आना, उनमें समाना,
 हक जमाना ,हटाए न जाना ।
अब तू भूलता ही नहीं।

पल्लवी गोयल
चित्र yourquote  से साभार 

सोमवार, 4 नवंबर 2019

गंतव्यहीन


एक पत्र था वह 
मेरे अरमानों का 
कुछ बातें थीं 
कुछ  यादें थीं 
कुछ मुलाकातों का 
जिक्र वहीं था
कुछ टूटे का 
काँच वहीं था
कुछ कसमें थीं
 कुछ वादे थे 
टूटे संभले से 
इरादे थे 
कुछ कहे अनकहे
 जुमले थे 
कुछ सुने अनसुने 
किस्से थे
कुछ चोटों का 
मर्म वही था 
कुछ दुखड़ोंका 
गम भी वहीं था 
कुछ आंखों की
 नरमी थी 
कुछ सांसों की 
गर्मी थी
भावों के जाम 
शब्दों में उडेले थे 
लड़खड़ाते इधर-उधर 
फैले थे 
झरना था या
बांध कोई  टूटा
जिधर निकलता 
सब कुछ बदलता 
बेहतर था वह
मेरे पास रहे 
निर्माता के यादों का
 बस साक्षी  बने।

पल्लवी गोयल 
चित्र गूगल से साभार 

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

तन्हाई


जिंदगी के
गिलास में 
ये तन्हाई 
जो ढाली  है 
न साकी 
न हमघूँट  कोई 
न ईद 
न दिवाली है 
न आता 
न जाता कोई 
बस मैं  थोड़ी और 
'ये' डाली है
 पीता   ही 
चला  जाता  हूँ। 
न  होता   ये खाली है 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

गौर करें, फरमाया है -


गौर करें, फरमाया है -
बारिश का यह मौसम
मुझे बड़ा भाया है
आप बताएं क्या आपको
भी यह रास आया है ?

बादलों की रेस ने
मुझे बड़ा हर्षाया है
 जरा नजरें उठाएं
क्या आपको भी
कुछ नजर आया है?

बूँदों के  लहराते नृत्य ने
 मन को भी नचाया है
नृत्य  के इस समारोह ने
आपके मन को क्या बताया है?

झरझर टपटप का बेताला संगीत 
खिड़कियों से गुजर आया है
क्या आपके घर में भी इसने
आपको ऐसे ही तरसाया  है-

गर्म चाय की चुस्कियों  के बीच
ठंडे पानी ने मुझे सिहराया है।
आपका क्या हाल है जनाब
 क्या आपने ये आनंद उठाया है ?

सवालों पर जरा नज़र फिराइए
जवाबों को यहाँ  तुरंत  दोहराइए ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

गुरुवार, 16 मई 2019

हे सुंदरी! तुम कौन हो?



हे सुंदरी! तुम कौन?
कुछ अपनी  सी लगती हो।

हजारों सालों की दूरी सही,
पर प्रीत पुरानी लगती है।

गुमसुम चुप सा ठहर गया यूँ ,
समय यहाँ और वहाँ  कोई ।

वक्त ने खड़ी इस बार भी
की ,फिर  नयी दीवार  वहीं।

हे प्रिये! तुम यूँ ही  रहो,
अपलक  तुम्हें  निहारूंगा मैं।

सौ जान तुम्हारी एक अदा
पर ,बार -बार वारूंगा  मैं।

मुझे  देख खुश होती हो तो
समझ लो बस इतनी-सी बात ।

इस घनेरी  हँसी के  आगे,
बिक जाऊँ ,बिन मोल के हाथ।

मैं  भूत का साया  भले हूँ ,
तुम  भविष्य का उजला गात।

मेरी तेरी  प्रीत के आगे ,
वक्त की  नहीँ  कोई  औकात ।

पल्लवी गोयल
चित्र गूगल से साभार 

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019

रुठो मेरे मन




रुठो मेरे मन,

एक बार और रूठो तुम।


जो तुम रूठोगे ऐसे,

सब तुम्हें मनाएंगे कैसे न कैसे।

कभी इधर -कभी उधर ,आएंगे ,

आगे कभी पीछे झांक के जाएंगे।


देख -देख कर इनको,

आप ही हँस लेना ।

मन ही मन गदगद हो,

ऊपर से थोड़ा और रूठना ।


मौकापरस्त बन अवसर का ,

इस समय लाभ उठाना।

परिवार के सदस्यों के मनों,

के साथ पिकनिक पर जाना।


पर रूठ कर उन्हें

जरा और दिखाना।


किसी के मित्रों की भीड़ ,

दो मिनट के लिए थम जाएगी।

किसी के कंप्यूटर का कर्सर,

शायद पाँच सेकंड के लिए जम जाएगा।


कोई पानी पीने किचन में आएगा,

अपनी भरपूर नजरों से पिघलाएगा।

तो कोई फोन करके प्यार से,

किचन का मैन्यू भी बुलवाएगा।


अकेलेपन की इस भीड़ का मज़ा,

तुम बेहिचक उठाते रहना।

धीरे से प्रत्यक्ष में मुस्करा देना,

पूरे परिवार को खिलखिलाकर,

हँसने का एक मौका अवश्य देना।
पल्लवी गोयल