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शुक्रवार, 30 मार्च 2018

तन्हाई



ग़मे जिंदगी मुझे तुझसे कोई शिकवा नहीं ,
 हमक़दम था जो बीच राह अलविदा कह गया 

क्या लिपटे थे कलेजे से ज़माने के सितम कम! 
जो रुखसत ले इससे ,दे बैठा एक नया गम। 

खाए थे भर- भर के कसमे और वादे, 
जाते ही उस राह पर इस राह को भूले।  

धड़कनों  ने धक- धक जो पुकारा हर बार ,
हर बार आ लौटी ये पा  खाली  दीवार। 

रूह से रूह के मिलन का बता मैं  क्या करूँ ,
न लेती ये विदा ,न आती 'वो' जो पुकारूँ। 

हर तरफ है भीड़,गुलज़ार , तमाशे, ठहाके, 
बस तन्हा ये वज़ूद , समेटे बिखरे दिल के टुकड़े। 

पल्लवी गोयल 
चित्र साभार गूगल 

 

15 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आदरणीय कुसुम जी,आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया ही लेखन का उत्साह बनाए रखती है । प्रेम भाव बनाए रखिएगा।बहुत बहुत आभार ।
      सादर ।

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  2. आह..हृदय खोल कर रख दिया आपने अपना. बहुत संजीदा,
    एक पुकार जो सीधा रूह से निकली है ये मैम.
    इस खूबसूरत रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके अमूल्य स्नेह के लिए शुक्रगुजार है हम ।सुधा मैम,बहुत बहुत धन्यवाद ।
      सस्नेह ।

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  3. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपका स्वागत है प्रसन्नवदन जी ।
      रचना पसंद करने के लिए आभार ।
      सादर ।

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  4. प्रिय श्वेता जी
    नमस्कार ।
    पाँच लिंकों में स्थान पाना सदैव ही आनंददायक रहा हैं
    इसके लिए हृदय से आभार ।
    सस्नेह ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार,सुधा जी ।

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  6. बेहतरीन रूमानी कविता ... शब्द मन में तैर रहे है 

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार संजय जी ।
      सस्नेह ।

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