विषपान करो !
जग दाता है ,
ना समझो
वह अमृत देगा ।
जीना है
उसके हक में
मरना वह
तुमको देगा।
नीलकंठ बन
धरो गले में ,
दिल दिमाग
से दूर रखो।
व्यक्ति, व्यक्ति
लालच देगा,
प्रेम ,झूठ का
धंधा होगा ।
फिर आशा की
बेल का झुलसा,
सूखा फाँसी का
फंदा होगा।
जीना खुद का
खुद पर रखो।
जग को बस
उससे दूर रखो।
याद रखो तुम
अपने में पूरे।
विश्वास रखो
और बढ़े चलो।
पल्लवी गोयल
विश्वास रखो
जवाब देंहटाएंऔर बढ़े चलो।
वाह सुंदर संदेशप्रद रचना !!
आदरणीया
हटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।
वाह! शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय
हटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।
बहुत सुंदर और अर्थपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंबधाई
आदरणीय
हटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है। रचना पसंद करने के लिए सादर आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।
मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
जवाब देंहटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच में रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार ।
जी, अवश्य मुझे खुशी होगी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना ।
जवाब देंहटाएं