नि:शब्द, सागर , नदी, झरनों से
रिश्ता कुछ गहरा है ।
इनके शोर में भी, बरसों बरस
का मौन ठहरा है ।
बाधा ,ऊँचाई ,गर्त हर कदम
पर भहरा है ।
पर इनका जल इनकी मर्यादा
में ही ठहरा है
ऐ दिल, हृदय, शरीर तुम्हारे भी
सिर पर सेहरा है ।
दुनिया के कोलाहल में भी
जीवन शांत लहरा है।
पल्लवी गोयल
( चित्र गूगल से साभार )
प्रिय पल्लवी जी -- कल मेरा हिंदी टूल काम नहीं कर रहा था | पर मैंने कल ही पढ़ ली थी ये रचना | मुझे बहुत ही अच्छी लगी | मौन को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने | आप अच्छा लिखती है |
जवाब देंहटाएंदुनिया के कोलाहल में भी
जीवन शांत लहरा है।---------------- सचमुच !!!!!!!!!!!!!
सस्नेह शुभ कामना |
प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभार, रेनू जी ।
जवाब देंहटाएंस्नेह ।
बहुत ही बेहतरीन शब्दों में मन के भावों की प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
धन्यवाद संजय जी,
हटाएंऐसा प्रोत्साहन ही व्यस्त दिनचर्या में से भी कुछ समय निकलकर आप सभी के साथ बिताने के लिए प्रेरित करता है ।
सादर ।