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बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

मौन


नि:शब्द, सागर , नदी, झरनों से
रिश्ता कुछ   गहरा है ।

इनके शोर में भी, बरसों बरस
का मौन ठहरा है ।

बाधा ,ऊँचाई  ,गर्त    हर कदम
पर भहरा है ।

पर इनका जल  इनकी मर्यादा
में ही ठहरा है


ऐ दिल, हृदय, शरीर तुम्हारे भी
सिर पर सेहरा है ।

दुनिया के कोलाहल  में भी
 जीवन शांत लहरा है।

पल्लवी गोयल 
( चित्र गूगल से साभार )











5 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय पल्लवी जी -- कल मेरा हिंदी टूल काम नहीं कर रहा था | पर मैंने कल ही पढ़ ली थी ये रचना | मुझे बहुत ही अच्छी लगी | मौन को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने | आप अच्छा लिखती है |
    दुनिया के कोलाहल में भी
    जीवन शांत लहरा है।---------------- सचमुच !!!!!!!!!!!!!
    सस्नेह शुभ कामना |

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  2. प्रोत्साहन के लिए ह्रदय से आभार, रेनू जी ।
    स्नेह ।

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  3. बहुत ही बेहतरीन शब्दों में मन के भावों की प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति !
    आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

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    उत्तर
    1. धन्यवाद संजय जी,
      ऐसा प्रोत्साहन ही व्यस्त दिनचर्या में से भी कुछ समय निकलकर आप सभी के साथ बिताने के लिए प्रेरित करता है ।
      सादर ।

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