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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

मेरी दुनिया

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अपनी सपनीली दुनिया की 
 मैं अकेली परी हूँ


यहाँ फूल मुस्काते 
हैं पेड़ खिलखिलाते 

हर एक पहाड़ 
 हैं वादियों में गीत गाते

हवाएँ  जब चलती 
हैं ठुमककर  लहराती 

प्रकृति मगन हो 
शांति  गुनगुनाती 

आसमां  का विस्तार  
बाँहों में नाप पाती 

पिता सा वृहद् रूप 
हूँ उसमें  ही पाती 

धरती की गोदी में 
झूलती है ये हस्ती 

घूमती फिरती हूँ 
निडर हो मैं  हँसती 

भौरें संदेशा  सुनाते 
पंख तितलियों के 
मुझको लुभाते 

जब भी मैं गुमसुम हूँ 
बैठी पकड़े किनारा 

छेड़ना मुझे कभी  ना
वहीँ होता अस्तित्व सारा 

उस दुनिया की सैर से
जब आती यहाँ पर

लगता है यह संसार 
मुझको प्यारा  प्यारा 







चित्र साभार गूगल 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।

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  2. पल्लवी जी, बहुत अच्छी लगी आपकी दूनिया!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी दुनिया को पसन्द करने के लिए धन्यवाद है आपको....

      हटाएं
  3. पल्लवी मैम, आपकी सपनीली दुनिया कितनी खूबसूरत है काश यह मूर्त रूप ले पाती ।

    जवाब देंहटाएं
  4. एक ही बात है सुधा मैम.... इस दुनिया में मैं मूर्त हो जाती हूँ....

    जवाब देंहटाएं