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मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

दो चार दिन

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जिंदगी है दो चार दिन की 
चल खुल के सांस ले ले .
दोस्तों से भर ले दुनिया 
दुश्मनों  को दोस्त कर ले .
तू भी अच्छा मैं भी अच्छा 
फिर हृदय  है कौन मैला !
मैल ,धूल धरती पर सजती 
देख हृदय में जगह न ले ले . 
नफ़रतों  की भीड़ में से 
चन्द रहमतों को साथ ले ले .
जिंदगी है दो चार दिन की 
चल खुल के सांस ले ले .

7 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut achhi aur khoobsurat panktiyan hain maam.aur samay ki mang bhi.👍👌👌👌👌

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  2. बेहद सुंदर रचना। बहुत ही अच्‍छी है आपकी यह रचना।

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  3. Aap ki ka'yi kavitayen padhieyn. Pallaviji Aap ki abhiveakti ki ek anuthi shali hai.jo aap ko alag pahchaannprapt krsti hai. Congrats

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