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रविवार, 9 अगस्त 2015

सीता माता का तृण


सीता माता  का  तृण,
क्यों न  पहुँचता ,
उन  बसों , खेतों  और  घरों  तक

जो  रोक  पाए उन
रावणों  को  वहीं  पर।

क्या  धरती  तृण शून्य
हो  चुकी है ?

या  'राम  का  आगमन'
बीती बात  बन  चुकी है।

लगता है  समुद्र  का  आकार
बहुत  बड़ा  हो  गया है।

तभी तो  रावण
इतना  निश्चिंत  हो गया है।

लंका  का  अभेद्य  किला  देख
अनेक  'रामों  ने  भी  रावण
बनना  स्वीकार कर  लिया है।

क्योंकि  वहाँ प्राप्य का अधिकार
और  सुरक्षा  दोनों का 
  गहरा अहसास है। 

1 टिप्पणी:

  1. आज के रावणों को किसी बात का डर नहीं है।आज के सच को उजागर करती एक खूबसूरत कविता।☺☺👏👏👏

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